Sunday, April 12, 2009

अब डरने लगा हूँ

पहले डरता नही था पर अब डरने लगा हूँ ,

रोज़ तिल तिल कर मरने लगा हूँ ,

रोज़ बस से आफिस जाता हूँ ,

इसलिए आस पास की चीज़ों पर ध्यान लगता

हूँसीट के नीचे किसी बम की शंका से मन ग्रसित रहता

हैकभी कोई लावारिस बैग भ्रमित करता है ।

ख़ुद से ज़्यादा परिवार की फ़िक्र करता हूँ

इसलिए हर बात मे उनका ज़िक्र करता हूँ

रोज़ अपने चैनल के लिए ख़बर करता हूँ
और किसी रोज़ ख़बर बनने से डरता हूँ
मैं एक आम हिन्दुस्तानी की तरहां रहता हूँ

इसलिए रोज़ तिल तिल कर मरता हूँ

हालत यही रहे तो किसी रोज़ मैं भीकिसी सर फिरे की गोली या बम का शिकार बन जाऊँगा

कुछ और न सही पर बूढे अम्मी अब्बू केआंसुओं का सामान बन जाऊँगा।

इस तरह एक नही कई जिनदगियाँ तबाह हो जाएँगीबहोत न सही पर थोडी ही

दहशतगर्दों की आरजुओं की गवाह हो जाएँगी ।

इसीलिए मैं अब डरने लगा हूँहर रोज़ तिल तिल कर मरने लगा हूँ ,

तिल तिल कर मरने लगा हूँ ।

Posted by Tanzir Ansar

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